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संविधान की छठी अनुसूची

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 (2) के तहत छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों-असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा पर लागू होती है तथा अनुसूची में इन राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन के प्रावधान किये गए हैं।

  • छठी अनुसूची उपर्युक्त 4 राज्यों में आदिवासियों के हितों की रक्षा हेतु कानून बनाने के लिए स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils-ADC) के गठन का प्रावधान करती है।
  • संविधान की छठी अनुसूची तथा बारदोलाई समिति द्वारा अग्रेषित स्वायत्त परिषद की अवधारणा वर्ष 1949 में संविधान सभा में की गई चर्चा और बहस का परिणाम थी।
  • इस अनुसूची का उद्देश्य अविभाजित असम के पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को स्वशासन प्रदान करना था।
  • छठी अनुसूची उक्त 4 राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करने तथा क्षेत्रों में विकास के प्रयास शुरू करने के लिए लागू की गई थी।
  • असम में बोडोलैण्ड प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) के गठन के लिए वर्ष 2003 में छठी अनुसूची में संशोधन किया गया।

क्या लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जा सकता है ?

सितम्बर, 2019 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की सिफारिश की थी।

  • अनुसूचित जनजाति आयोग ने यह सिफारिश इस आधार पर की थी कि नवगठित केन्द्र शासित प्रदेश मुख्य रूप से आदिवासी बहुल है, देश के अन्य हिस्सों के लोगों को वहा जमीन खरीदने या अधिग्रहण करने से प्रविबन्धित किया गया है तथा इस क्षेत्र की विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की आवश्यकता है।
  • उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर के बाहर के किसी भी क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
  • यहां तक कि मणिपुर में भी, जहां कुछ स्थानों पर आदिवासी बहुल आबादी है, वहां की स्वायत्त परिषदों को भी छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
  • नागालैण्ड और अरूणाचल प्रदेश, जो पूरी तरह से आदिवासी बहुल राज्य हैं, उन्हें भी छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।

स्वायत्त जिला परिषद-

  • स्वायत्त जिला परिषद, इस अनुसूची में सम्मिलित राज्यों में स्थित जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले निकाय हैं, जिन्हें संविधान द्वारा राज्य विधायिका के अन्तर्गत विशिष्ट स्वायत्तता प्रदान की गई है।
  • इस अनुसूची में शामिल राज्यों के राज्यपालों को इन स्वायत्त जिलों के क्षेत्रों को बढ़ाने या घटाने या नाम बदलने का अधिकार है।
  • संसद या राज्य विधायिका के कानून स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते या निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
  • इस अनुसूची के तहत स्वायत्त जिला परिषदों को राज्य के भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता प्राप्त हैं।
  • स्वायत्त जिला परिषदों को व्यापक नागरिक और आपराधिक न्यायिक शाक्तियां दी गई हैं, उदाहरण ग्राम न्यायलय आदि की स्थापना करने में सक्षम हैं। हालाकिं, इन परिषदों का क्षेत्राधिकार सम्बन्धित उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन है।
  • स्वायत्त जिला परिषद में 30 सदस्य होते हैं, जिनकी पदावधि 5 वर्ष होती है। हालाकिं असम में बोडोलैण्ड प्रादेशिक परिषद इसका अपवाद है जिसमें 40 से अधिक सदस्य हैं।
  • इन परिषदों के पास भूमि, जंगल, जल, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, स्वच्छता, गांव एवं शहर स्तरीय पुलिसिंग, विरासत, विवाह और तलाक आदि के सम्बन्ध में कानून, नियम और विनियम बनाने की शक्ति होती है।

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By admin

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