मराठा साम्राज्य और संघ

मराठा साम्राज्य और संघ

  • 17 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य की विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ होने के साथ ही भारत में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना शुरू हो गयी । स्वतंत्र हुये राज्यों में मराठा राज्य सर्वाधिक शक्तिशाली था।
  • मराठों के उत्कर्ष में उस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति, औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों और उनके परिणामस्वरूप हिन्दू जागरण, मराठा सन्त कवियों का धार्मिक आन्दोलन आदि महत्वपूर्ण कारक हैं।
  • शिवाजी के उदय से पूर्व बहुत से मराठा सिपहसालार तथा मनसबदार के रूप में बहमनी राज्य, बीजापुर और अहमदनगर में नौकरी करते थे।

शिवाजी (1627-16800)

  • शिवाजी का जन्म पूना के निकट शिवनेर किले में 20 अप्रैल, 1627 को शाहजी और जीजाबाई के यहां हुआ था।
  • शिवाजी के संरक्षक एवं शिक्षक दादा कोणदेव तथा समर्थ रामदास गुरू थे।
  • शिवाजी ने रायगढ़ को 1656 ई0 मराठा राज्य की राजधानी बनाया।
  • 1643 ई0 में बीजापुर के सिंहगढ किले को जीतकर शिवाजी ने अपने राज्य का विस्तार किया। तत्पश्चात 1646 ई0 में तोरण के किले पर अपना अधिपत्य स्थापित किया।
  • शिवाजी की विस्तारवादी नीति से बीजापुर का शासक सशंकित हो उठा, उसने सरदार अफजल खां को शिवाजी की शक्ति को दबाने के लिए भेजा। शिवाजी ने 1659 ई0 में अफजल खां को पराजित कर हत्या कर दी।
  • मुगल शासक औरंगजेब ने शाइस्ता खां को शिवाजी को समाप्त करने के लिए दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया।
  • 15 अप्रैल 1663 ई0 में शिवाजी ने पूना में शाइस्ता खाँ पर आक्रमण किया। (Uksssc, सचिवालय सुरक्षा दल परीक्षा, 2021)
  • औरंगजेब ने शाइस्ता खां के असफल होने पर शिवाजी का दमन करने के लिए आमेर के मिर्जा राजा जय सिंह को दक्षिण भेजा।
  • जय सिंह के नेतृत्व में पुरन्दर के किले पर मुगलों की विजय तथा रायगढ़ की घेराबन्दी के बावजूद जून 1665 ई0 में उसने शिवाजी से पुरन्दर की सन्धि की।
  • 1666 ई0 में औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर जयपुर भवन (आगरा) में रखा परन्तु शिवाजी चतुराई से आगरे के कैद से फरार हो गये।
  • 14 जून, 1674 ई0 को शिवाजी ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट से राज्याभिषेक रायगढ़ के किले में करवाया तथा छत्रपति की उपाधि धारण की।
  • 12 अप्रैल, 1680 ई0 को शिवाजी की मृत्यु हो गयी।

शिवाजी का प्रशासन

  • शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था अधिकांशतः दक्षिणी राज्यों और मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था से प्रभावित थी, जिसके शीर्ष पर छत्रपति होता था।
  • राजा या छत्रपति– प्रभुत्व सम्पन्न शासक, अन्तिम कानून निर्माता, प्रशासकीय प्रधान, न्यायाधीश और सेनापति।
  • शासन का वास्तविक संचालन अष्टप्रधान नामक आठ मंत्री किया करते थे जिसका कार्य राजा को परामर्श देना मात्र था।
  • पेशवा अथवा मुख्य प्रधान-राजा का प्रधानमंत्री, सम्पूर्ण राज्य के शासन की देखभाल।
  • अमात्य अथवा मजूमदार-वित्त एवं राजस्व मंत्री, मुख्य कार्य आय-व्यय के सभी लेखों की जांच।
  • वाकिया नवीस अथवा मंत्री-राजा के दैनिक कार्यों तथा दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाहियों का विवरण।
  • शुरू नवीस अथवा सचिव-राजकीय पत्र व्यवहार का कार्य देखना।
  • दबीर या सुमन्त-विदेश मंत्री।
  • सेनापति अथवा सर-ए-नौबत-सेना की भर्ति, संगठन, रसद आदि।
  • पण्डितराव-विद्वानों और धार्मिक कार्यो के लिए दिए जाने वाले अनुदानों का दायित्व।
  • न्यायाधीश-राज्य की समस्त दीवानी तथा फौजदारी मामले।

सैन्य व्यवस्था

  • शिवाजी की सेना दो भागों में विभक्त थी-बरगीर तथा सिलेहदार
  • बरगीर-वे घुड़सवार सैनिक थे जिन्हें राज्य की ओर से घोंडे और शस्त्र दिये जाते थे।
  • सिलेहदार-वे स्वतंत्र सैनिक जो अपना अस्त्र-शस्त्र स्वयं रखते थे।
  • शिवाजी ने नौसेना की भी व्यवस्था की थी।
  • मावली सैनिक शिवाजी की अंगरक्षक थे जो एक पहाड़ी लडाकू जाति थी।
  • शाही घुड़सवार सैनिकों का पागा कहा जाता था।

राजस्व प्रशासन

  • शिवाजी की राजस्व व्यवस्था अहमदनगर राज्य में मलिक अम्बर द्वारा अपनायी गयी रैयतवाड़ी प्रथा पर आधारित थी।
  • भूमि की पैमाइश रस्सी के स्थान पर काठी या जरीब से किया जाता है।
  • चौथ तथा सरदेशमुखी मराठा कराधान प्रणाली के प्रमुख कर थे।
  • चौथ-सामान्य रूप से चौथ मुगल क्षेत्रों की भूमि तथा पड़ोसी राज्य की आय का चौथा हिस्सा होता था। यह विजित राज्यों के क्षेत्रों से उपज का एक चौथाई के रूप में वसूल किया जाता था।
  • सरदेशमुखी-यह कर वंशानुगत रूप से उस प्रदेश का सरदेशमुखी होने के नाते वसूल किया जाता था। यह आय का 10 प्रतिशत लिया जाता था।

शिवाजी के उत्तराधिकारी

शम्भाजी (1680-1689 ई0)

  • शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य उत्तराधिकार के संघर्ष में उलक्ष गया। शम्भाजी और राजाराम के बीच उत्तराधिकार के युद्ध में, शम्भाजी ने राजाराम को पदच्युत करके 16 जुलाई 1680 को मराठा साम्राज्य की गद्दी पर आसीन हुआ।
  • शम्भाजी ने उत्तर भारतीय ब्राहमण कवि कलश को प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया।
  • मार्च, 1689 ई0 में औरंगजेब ने शम्भाजी की हत्या कर मराठा राजधानी रायगढ़ पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया और शम्भाजी के पुत्र शाहू का रायगढ़ के किले में बन्दी बना लिया।

राजाराम (1689-1700 ई0)

  • शम्भाजी की मृत्यु के बाद राजाराम को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया गया।
  • 1689 ई0 में राजाराम मुगलों के आक्रमण के भय से अपनी राजधानी रायगढ़ से जिंजी ले गया। 1698 ई0 तक जिंजी मुगलों के विरूद्ध मराठा गतिविधियों का केन्द्र तथा मराठा की राजधानी रही।
  • जिंजी के बाद 1699 में सतारा मराठों की राजधानी बनी।
  • राजाराम स्वयं को शाहू का प्रतिनिधि मानकर कभी गद्दी पर नहीं बैठा।

शिवाजी द्वितीय एवं ताराबाई (1700-1707 ई0)

  • राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने नाबालिक पुत्र शिवाजी द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठाया और मुगलों से सघंर्ष जारी रखा।
  • ताराबाई ने रायगढ, सतारा तथा सिंहगढत्र आदि किलों को मुगलों से जीत लिया।

शाहू (1707-1748 ई0)

  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्र आजमशाह ने 1707 ई0 में शाहू को कैद से मुक्त कर दिया।
  • अक्टूबर 1707 ई0 में शाहू तथा ताराबाई के मध्य खेड़ा का युद्ध हुआ जिसमें शाहू, बालाजी विश्वनाथ के मदद से विजयी हुआ।
  • अब सतारा के प्रमुख शाहू और कोल्हापुर के प्रमुख शिवाजी द्वितीय अर्थात ताराबाई।
  • दो प्रतिद्वन्दी शक्तियों सतारा तथा कोल्हापुर के मध्य शत्रुता का अन्ततः 1731 ई0 वार्ना की सन्धि के द्वारा समाप्त हुयी।

पेशवाओं के काल में मराठा शक्ति का उत्कर्ष

बालाजी विश्वनाथ (1713-1720 ई0)

  • बालाजी विश्वनाथ एक ब्राहमण था जिसने अपना राजनीतिक जीवन एक छोटे से राजस्व अधिकारी के रूप् में शुरू किया था।
  • बालाजी विश्वनाथ की सबसे बडी उपलब्धि मुगलों तथा मराठों में मध्य एक स्थाई समझौते की व्यवस्था की थी, जिसमें दोनों पक्षों के अधिकार तथा प्रभाव क्षेत्र की विधिवत व्यवस्था की गई थी।
  • इतिहासकार रिचर्ड टेम्पेल ने मुगल सूबेदार हुसैन अली तथा बालाजी विश्वनाथ के मध्य 1719 ई0 में हुई सन्धि को मराठा साम्राज्य के मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी।

बाजीराव प्रथम

  • 1724 ई0 में शूकर खेड़ा के युद्ध में मराठों की मदद से निजाम-उल-मुल्क ने दक्कन में मुगल सूबेदार मुबारिज खान को परास्त कर एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की।
  • निजाम-उल-मुल्क ने स्थिति मूजबत करने के बाद मराठों के विरूद्ध कार्यवाही शुरू की। बाजीराब प्रथम ने निजाम-उल-मुल्क को पालखेड़ा के युद्ध में पराजित किया।
  • मुन्शी शिवगांव की सन्धि में निजाम ने मराठों को चौथ और सरदेशमुखी देना स्वीकार किया। दक्कन में मराठों की सर्वोच्चता स्थापित।
  • 1737 ई0 में मुगल बादशाह ने निजाम को मराठों के विरू़द्ध भेजा, किन्तु भोपाल के युद्ध में पराजित।
  • भोपाल युद्ध के परिणामस्वरूप् 1738 ई0 में दुरई सराय की सन्धि हुयी। निजाम ने मराठों को सम्पूर्ण मालवा का प्रदेश तथा नर्मदा से चम्बनल के इलाके की पूरी सत्ता मराठों को सौंपा।
  • 1739 ई0 में बाजीराव प्रथम ने पुर्तगालियों से सालसीट और बेसिन छीन लिया।
  • बजीराव प्रथम ने ग्वालियर के सिंधिया, गायकवाड, इंदौर के होल्कर और नागपुर के भोंसले शासकों को सम्मिलित कर एक मराठा संघ की स्थापना की।

बालाजी बाजीराव (1740-1761 ई0)

  • बाजीराव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बालाजी बाजीराव (नाना साहब के नाम से प्रासिद्ध) पेशवा बना।
  • 1750 ई0 में रघुजी भोंसले की मध्यस्ता से राजाराम द्वितीय के मध्य संगोला की सन्धि हुयी। सन्धि के द्वारा पेशवा मराठा साम्राज्य का वास्तविक प्रधान बन गया।
  • मराठा राजनीति का केन्द्र पूना हो गया।
  • बालाजी बाजीराव के शासनकाल में 14 जनवरी 1761 ई0 में पानीपत का तृतीय युद्ध मराठा और अहमद शाह अब्दाली के बीच हुआ।
  • पानीपत का तृतीय युद्ध मुख्यतः दो कारणों से हुआ-प्रथम नादिर शाह की भांति अहमद शाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था। दूसरा मराठे हिन्दू पादशाही की भावना से प्रेरित होकर दिल्ली पर प्रभाव स्थापित करना चाहते थे।
  • पेशवा बालाजी बाजीराव ने अपने नाबालिग बेटे विश्वास राव के नेतृत्व एक शक्तिशाली सेना भेजी किन्तु वास्तविक सेनापति उसका चचेरा भाई सदाशिव राव भाऊ था।
  • रूहेला सरदार नजीबुद्दौला तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।
  • मराठा फौज के यूरोपीय ढंग से संगठित पैदल और तोपखाने का नेतृत्व इब्राहिम खां गर्दी कर रहा था।
  • पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार हुयी जिसमें विश्वास राव तथा सदाशिवराव के सहित 28000 सैनिक मारे गये।

माधवराव प्रथम (1761-1772 ई0)

  • माधव ने 1763 में उदीर के युद्ध में हैदराबाद के निजाम को पराजित कर, राक्षस की सन्धि की।
  • माधवराव ने रूहेलो, राजपूतों और जाटों को अधीन लाकर उत्तर भारत में मराठों का वर्चस्व स्थापित करा।
  • 1771 ई0 में माधवराव के शासनकाल में मराठों ने निर्वासित मुगल बादशाह आलम को दिल्ली पर पुनः स्थापित किया, बादशाह पेंशन भोगी बन गया।

नारायण राव (1772-11774 ई0)

  • नारायण राव को अपने चाचा रघोबा से गद्दी को लेकर लम्बे समय तक सघंर्ष चला जिसमें अन्ततः रघोबा ने नारायण की हत्या कर दी।

माधवराव नारायण (1774-1796 ई0)

  • नाना फड़नवीस के नेतृत्व में एक काउंसिल ऑफ रीजेन्सी का गठन किया गया । वास्तविक प्रशासन अब इसी परिषद के हाथों में निहित।
  • प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध।
  • 1782 ई0 में सालबाई की सन्धि, मराठों एवं अंग्रेजो बीच।

बाजीराव द्वितीय (1796-1818 ई0)

  • 1802 ई0 में बेसीन की सन्धि के तहत सहायक सन्धि स्वीकार कर लेने से मराठा अधिकारियों में मतभेद। सिन्धिया तथा भोसले ने इस सन्धि का कडा विरोध किया।
  • द्वितीय तथा तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध।
  • 1803 में अंग्रेजों और भोसले के साथ देवगांव की सन्धि कर कटक और वर्धा नदी के पश्चिम का क्षेत्र लिया।
  • अंग्रेजो ने 1803 में ही सिंधियो से सूरजी-अर्जतगांव की सन्धि कर उसे गंगा तथा यमुना के क्षेत्र को ईस्ट इंण्डिया कम्पनी को देने के लिए के बाध्य किया।
  • 1804 में अंग्रेजो तथा होल्कर के तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध, पराजित होकर होल्कर ने अंग्रेजों के साथ राजपुर पर घाट की सन्धि की।
  • मराठा शक्ति का पतन 1817-1818 में हो गया, जब स्वयं पेशवा बाजीराव द्वितीय ने पूरी तरह अंग्रेजों के अधीन कर लिया।
  • बाजीराव द्वितीय ने पूना प्रदेश को अंग्रेजी राज्य में विलय कर पेशवा के पद को समाप्त कर दिया।

आंग्ल-मराठा संघर्ष

  • प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782 ई0)
  • द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1806 ई0)
  • तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818 ई0)

मराठा कालीन अधिकारी

  • मजूमदार-आय-व्यय का निरीक्षक
  • मिरासदार-जमींदार
  • पाटिल या पटेल-ग्राम का मुखिया या मुख्य अधिकारी, जो कर सम्बन्धी, न्यायिक तथा अन्य प्रशासनिक कार्य करता था।
  • कुलकर्णी (लेखपाल)-भूमि का लेखा जोखा रखता था।
  • चौगुले-पटेल का सहायक तथा कुलकर्णी के लेखे की देखभाल करना।
  • बारह वलूटे (शिल्पी)-ग्राम की औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
  • मामलतदार एवं कामविसदास-ग्राम में कर निर्धारण पटेल की परामर्श से करना। इसके अतिरिक्त से जिले में पेशवा के प्रतिनिधि।
  • देशमुख तथा देशपाण्डे (जिलाधिकारी)-मामलतदार के ऊपर नियन्त्रण रखना। इनकी पुष्टि के बिना कोई भी लेखा स्वीकार नहीं किया जाता था। राजस्व अधिकारी तथा भ्रष्टाचार रोकना प्रमुख कार्य।

स्मरणीय तथ्य

  • पेशवा का पद अष्टप्रधान की सूची में दूसरे स्थान पर था किन्तु पेशवा बालाजी बाजीराव के समय यह पद वंशानुगत हो गया।
  • पूना में पेशवा का सचिवालय हुजूर दफ्तर कहलाता था। पेशवा कालीन मराठा प्रशासन को केन्द्र।
  • संगोला की सन्धि 1750 ई0 द्वारा मराठों का वास्तविक प्रधान पेशवा बन गया।
  • पेशवाओं ने विधवा के पुनर्विवाह पर पतदाम नामक कर लगाया।
  • कामविदार चौथ वसूल करते थे तथा गुमाश्ता सरदेशमुखी की वसूली।
  • मीरासदार वे काश्तकार थे जिनकी अपनी स्वयं की भूमि तथा हल, बैल आदि पर स्वयं का अधिकार होता था।
  • उपरिस बटाईदार थे जिन्हे कभी भी बेदखल किया जा सकता था।
  • अधिकारियों को जो भूमि पहले मोकासा (भूमि अनुदान) तथा सरन्जाम के तौर पर दी जाती थी वह पेशव काल में वंशानुगत हो गयी। जिसे जागीर कहा जाने लगा।
  • बरगीर सरदारों की सेना के निर्वाह का मुख्य साधन शत्रु इलाकों में लूटमार करना था।

मराठों द्वारा की गई सन्धियाँ

सन्धि वर्ष सन्धिकर्ता
पुरन्दर की सन्धि 22 जून 1665 मुगलों की ओर से जयसिंह व शिवाजी
सूरत की सन्धि 1775 रघुनाथ राव व ईस्ट इंण्डिया कम्पनी
राक्षस भुवन की संन्धि 1763 पेशवा माधव तथा निजाम
कंकापुर की सन्धि 1769 माधवराव एवं जनोजी
स्ंगोली की सन्धि 1750 बालाजी बाजीराव एवं रामराजा
झलकी की सन्धि 1752 बालाजी एवं हैदराबाद के निजाम
पुरन्दर की सन्धि 1776 पेशवा माधवराव नारायण राव एवं अंग्रेज
बड़गाव की सन्धि 1779 पेशवा माधव नारायण राव एवं अंग्रेज
सालबाई की सन्धि 1782  पेशवा माधव नारायण राव एवं अंग्रेज
बसीन की सन्धि 31 दिसम्बर, 1802 बाजीराव द्वितीय एवं अंग्रेज
देवगांव की सन्धि 17 दिसम्बर, 1803 बरार के भोंसले एवं अंग्रेज
सुर्जी-अर्जुन की सन्धि 30 दिसम्बर, 1803 सिंधिया व अंग्रेज
राजापुर घाट की सन्धि 1804 होल्कर व अंग्रेज
पूना की सन्धि 13 जून, 1817 बाजीराव द्वितीय व अंग्रेज
ग्वालियर की सन्धि 5 नवम्बर, 1817 दौलत राव सिंधिया व अंग्रेज
मंदसौर की सन्धि 6 जनवरी, 1818 होल्कर व अंग्रेज

 

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