किसान विद्रोह

किसान विद्रोह और आंदोलन

नील विद्रेाह (1859-60)

  • नील विद्रोह की पहली घटना बंगाल के, नदियां जिला में स्थित गोविन्दपुर गांव में सितम्बर, 1859 में हुई। स्थानीय नेता दिगम्बर विश्वास और विष्णु विश्वास के नेतृत्व में किसानों ने नील की खेती बंद कर दी।
  • बंगाल के बुद्विजीवी वर्ग ने अखबारों में अपने लेख द्वारा तथा जनसभाओं के माध्यम से विद्रोह के प्रति अपने समर्थन को व्यक्त किया। इसमें हिन्दू पैट्रियाट के संपादक हरिश्चंद्र मुखर्जी की विशेष भूमिका रही।
  • नील बागान मालिकों के अत्याचार का खूला चित्रण दीनबंधू मित्र ने अपने नाटक नील दर्पण में किया है।

पावना विद्रोह (1873-76)

  • पावना क्षेत्र जो पटसन की कृषि हेतु प्रसिद्व है, के 50 प्रतिशत से अधिक किसानों को 1850 के अधिनियम दस के द्वारा जमीन पर कब्जे का अधिकार तथा कुछ सीमा तक लगान में वृद्वि के लिए संरक्षण प्राप्त था।
  • बुलोटीदार जिस गांव की परजा भी कहा जाता था में नाई, धोबी, बढ़ई, मोची तथा लुहार शामिल थे को जमींदारों के कार्य करने से रोका गया।
  • आंदोलनकारियों का नारा था कि हमें महारानी सिर्फ महारानी की रैययत होना चाहते है।
  • उस आंदोलन की एक विशेषता यह भी थी कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ कंधे से कधा मिलाकर आंदोलनरत रहंे, साम्प्रदायिक सौहार्द का यह एक अनूठा उदाहरण था।
  • बंगाल के बुद्विजीवी बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय तथा आर0सी0 दत्त ने पावना आंदोलन का समर्थन किया।
  • इण्डियन एसोसिएशन के सदस्य सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आनन्द मोहन बोस, द्वाराकानाथ गंागुली आदि ने किसानों की रक्षी हेतु अभियान चलाया।

दक्कन विद्रोह (1874-75)

  • महाराष्ट्र के पुणे और अहमदनगर के (दक्कन) जिलों में किसानों ने साहकारों के खिलाफ विद्रोह किया।

मोपला विद्रोह

  • मोपला लोग केरल के मालाबार क्षेत्र में रहने वाले इस्लाम धर्म में धर्मातारित अरब एवं मलयाली मुसलमान थे।
  • अधिकांश मोपला छोटे किसान या छोटे व्यापारी थेष् जो अपनी गरीबी और अशिक्षा के कारण थंगल कहे जाने वाले काजियों और मौलवियों के प्रभाव में थे।
  • 19210 में द्वितीय मोपला विद्रोह हुआ जिसके कारणों में कृषिजन्य असन्तोष था लेकिन कालांतर में असहयोग आंदोलन के स्थगित किये जाने पर इस आंदोलन ने साम्प्रदायिक, राजनीतिक स्वरूप धारण कर लिया।
  • खिलाफल आंदोलन के नेता शौकत अली, गांधी जी औश्र मौलानला अबुल कलाम आजाद ने मोपला विद्रोहियों का समर्थन किया।

फड़के आंदोलन

  • 1879 के करीब महाराष्ट्र में बासूदेव बलवंत फड़के का उद्य हुआ जिन्होंने महाराष्ट्र, में बुद्विजीवियों के सचेता राष्ट्रवाद तथा जनसाधारण के जुझारू राष्ट्रीयता के बीच सामंजस्य स्थापित किया।
  • फड़के ने रामोसी तथा महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले किसानों के सहयोग से एक संगठन बनाया, जिसके सहयोग से उनसे डकैतियां डालका धन एकत्र करना, संचार व्यवस्था को तहस-नहस करना, विद्रोह करना आदि को अपना लक्ष्य बनाया।
  • फड़के ने हिन्दू राज्य की स्थापना का नारा दिया, इनके आंदोलन से स्पर्श क्रांतिकारी आंतकवाद का पूर्वाभास मिलता है।
  • 1880 में फड़के को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया जहां तीन वर्ष का उसकी मृत्यू हो गई।

बीसवीं शताब्दी के किसान आंदोलन

  • भारत में गांधी जी के नेतृत्व में किया गया प्रथम किसान सत्याग्रह चंपारन सत्याग्रह था।

चंपारन सत्याग्रह

  • 1917 में चंपारन के राजकुमार शुक्ल ने चंपारन किसान आंदोलन का नेतृत्व गांधी को सौंपने के लिए लखनऊ में उसने मुलाकात की।
  • सत्याग्रह (भारत में) प्रयोग का गांधी जी द्वारा किया गया यह प्रथम प्रयास था।
  • च्ंपारन में गांधी जी के साथ राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर, महादेव देसाई नहररि पारिख, जे0वी0 कृपालनी भी थे।
  • च्ंपारन सत्याग्रह के दौरान गांधी जी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रवीन्द्र नाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा की उपाधि प्रदान की ।

खेड़ा सत्याग्रह

  • 1917-18 में फसल खराब होने के बाद भी खेड़ा के किसानों से लगान की वसूली की जा रही थी, खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने सरकार से लगान में राहत की मांग की लेकिन कोई रियायत न मिली।

अवध किसान सभा

  • गौरीशंकर मित्र, इन्द्र नारायण द्विवेदी तथा मदन मोहन मालवीय के प्रयत्नों से फरवरी, 1918 में अवध में उ0प्र0 किसान सभा का गठन किया गया।
  • उत्तर प्रदेश किसान सभा शक्तिशाली बनाने में बाबा रामचन्द्र, झिंगुरीपाल सिंह, दुर्गपाल सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
  • 17 अक्टूबर 1920 को बाबा रामचंद्र के प्रयास से अवध किसान सभा का गठन किया गया, इस संगठन को शक्तिशाली बनाने के लिए जवाहर लाल नेहरू, गौरीशंकर, माताबदल पांडे, देवनारायण पांडे, केदारनाथ आदि ने कार्य किया।
  • 1921 के अंत तक और 1922 के प्रारम्भ तक किसान आंदोलन हरदोई, बहराइच तथा सीतापुर मे एका आंदोलन के रूप में चलता रहा।

बरदोली सत्याग्रह (1928)

  • सूरत (गुजरात) के बारदोली ताल्लुके में 1928 में किसानों द्वारा लगान न अदायगी का आंदोलन चलाया गया।
  • गुजरात के किसान आंदोलन में कुनबी-पाटीदार जातियों के भू-स्वामी किसानों ने ही नहीं बलिक कालिपराज (कोल लोग), जनजाति के लोगों ने भी हिस्सा लिया।
  • कालीपराज जनजाति को स्थिति बदतर थी, उन्हें “हाली पद्वति” के अन्तर्गत उच्च जातियों को यहॉ पुश्तैनी मजदूर के रूप में कार्य करना होता था जिसके बदले उन्हे जीने भर का भोजन और तन ढकने भर का कपड़ा मिलता था।
  • बारदोली के मेहता बंधुओं (कल्याण जी, कुवंर जी, दयाल जी) ने किसानों के समर्थन में 1922 से ही आंदोलन चलाया हुआ था, लेकिन कालांतर में कपास की कीमत गिरने के बाद भी बम्बई सरकार द्वारा लगान में 30 प्रतिशत की वृद्वि कर देने के बाद मेहता बंधुओं ने ‘लगान अदायगी रोक’ नामक सत्याग्रह का नेतृत्व गांधीवाद बल्लभ भाई पटेल को प्रदान किया।
  • कांग्रेस के नरमपंथी गुट ने “सर्वेट ऑफ इंडिया सोसाइटी” के माध्यम से सरकार द्वारा किसानों की मांगों की जाँच करवाने का अनुरोध किया ।
  • सरकार ने बू्रम फील्ड और मैक्सवेल को बारदोली मामले की जांच का आदेश दिया। जांच रिपोर्ट में बढ़ी हुई तीस प्रतिशत लगान को अवैध करार दिया गया,सरकार ने लगान को घटकार 6 03 प्रतिशत कर दिया।
  • बारदोली सत्याग्रह के समय ही यहाँ की महिलाओं की ओर से गांधीजी ने वल्लभ भाई पटेल को “सरदार” की उपधि प्रदान की।

तेभागा आंदोलन

  • यह जोतदारों के विरूद्व बटाईदारों का आंदोलन था जिसे कम्पारम और भवन सिंह जैसे नेताओं ने नेतृत्व प्रदान किया।

अखिल भारतीय किसान सभा

  • 1928 में आंध्र पं्रातीय रैव्यत सभा की स्थापना हुई।
  • 1929 में स्वामी सहजांनद सरस्वती ने बिहार किसान सभा की स्थापन की।
  • ब्ंागाल में टेनेसी एक्ट को लेकर अकरम खां, अब्दंर्रहीम, फजलुलाहक प्रयासों से 1929 कृषक प्रजापार्टी की स्थापना हुई।
  • स्विनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति के बाद 11 अप्रैल, 1936 को लेखन में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना की गई।
  • प्रथम अखिल भारतीय किसान सभा की अध्यक्षता स्वामी सहजानंद सरस्वती ने की। आंध्र प्रदेश किसान आंदोलन के अग्रणी नेता एन0 सी0 रंगा किसान सभा का महासचिवव नियुत्क किया गया।http://shorturl.at/bgAEX

भारत का मजदूर आंदोलन

  • 1890 में एन0 एम0 लोखण्डी महोदय ने बम्बई मिल हैण्ड्स एसोसिएशन की स्थापना की जिसे आंशिक रूप से भारत का पहला मजदूर संघ माना जाता है।
  • मजदूर वर्ग की प्रथम संगठित हड़ताल ब्रिटिश स्वामित्व वाली रेलों में हुआ। 1899 में ग्रटे इंडियन पेनिन सुलार में कार्यरत श्रमिकों ने कम मजदूरी और अधिक कार्यावधि के कारण हड़ताल कर दी।
  • 22 जुलाई, 1908 को बाल गंगाधर तिलक को आठ वर्ष की सजा होने के बाद तत्कालीन बम्बई के कपड़ा मजदूर लगभग एक सत्ताह तक हड़ताल पर रहे, मजदूरों की यह हड़ताल उस समय की सबसे बड़ी राजनीतिक हड़ताल थी।
  • बी0 पी. वाडिया द्वारा गठित मदªास मजदूर संघ (1918) भारत का पहला आधुनिक मजदूर संगठन था।
  • 1920 में एम0 एन0 जोशी, जोसेफ बैमटिस्ट तथा लाला लाजपत राय के प्रयासों से अखिल भारतीया टेªड युनियन कांग्रेस (एटक)की स्थापना हुई।
  • आखिल भारतीय टेªड यूनियन कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष लाला लाजपत राय हुए (1920), यह सम्मेलन बम्बई में हुआ।
  • 1918 में गांधी जी ने अहमदाबाद टेक्सटाइ लेबर एसोसिएशन की स्थापना की। इसी संगठन द्वारा गांधी जी ने मजदूरों के लिए मध्यस्थता करने तथा अपने प्रसिद्ध ‘ट्रस्टी-शिप’ दर्शन का उल्लेख किया ।
  • एम0 एन0 राय जो साम्यवादी से अतिवादी लोकतंत्र के नेता बन गये थे, ने सरकार समर्थक श्रामिक दल ‘इडियन फेडरेशन ऑफ लेबर’ की स्थापना की।
  • राष्ट्रवादियों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में मई, 1947 में एटक से अलग होकर ‘भारतीय राष्ट्रीय टेड्र यूनियन कांग्रेस’ की स्थापना की

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