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अन्य जन आंदोलन (1757 से 1858 के बीच)
फकीर विद्रोह
- मजनूशाह की मृत्यू के बाद चिरागअली शाह ने आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिन्दू नेताओं ने इस आन्दोलन की सहायता की।
सन्यासी विद्रोह (1770-80)
- वारने हेस्टिंग्स ने लम्बे सैन्य अभियान के बाद इस विद्रोह को कुचलने में सफलता पायी।
- बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनन्द मठ में संन्यासी विद्रोह का उल्लेख मिलता है।
पागलपंथी
- 1813 में पागलपंथी सम्प्रदाय के नेता टीपू ने जमीदारों के विरूद्व काश्तकारों के समर्थन में विद्रोह कर जमीदारों के गढ़ों पर आक्रमण कर दिया।
वहाबी आंदोलन (1820-70)
- वहाबी आंदोलन के संस्थापक अब्दुल वहाब थे। भारत में इस आंदोलन को सैययद अहमद रायबरेलवी (1703-87) के कारण लोकप्रियता मिली।
- सैययद अहमद की मृत्यू के बाद पटना वहाबी आंदोलन का मुख्य केन्द्र बना, इस आंदोलन के अन्य महत्वपूर्ण नेताओं में विलायत अली, इनायत अली, मैलवी कासिम, अब्दुल्ला आदि शामिल थे।
- वहाबी आंदोलन का चरित्र साम्प्रदायिक अवश्य था लेकिन इन्होने का कभी विरोध नहीं किया। इनका आंदोलन भारत को अंग्रेजी मुक्त कराने और मुस्लिम राज्य की स्थापना के लक्ष्य से प्रेरित था।
कूका आंदोलन (1860-70)
- पश्चिमी पंजाब में कूका आंदोलन की शुरूआत भगत जवाहरमल में हुआ। सियान साहब के नाम से चर्चित जवाहरमल ने कूका आंदोलन की शुरूआत सिख पंथ में व्याप्त अंध विश्वास और बुराईयों को दूर करने किया।
- कूका आंदोलन के नेता रामसिंह कूका को सरकार ने रंगून निर्वासित दिया जहाँ उनकी 1885 में मृत्यू हो गई।
- अपदस्थ शासकों के आश्रितों द्वारा किये जाने वाले आंदोलन में थे-रामोसी विद्रोह, गडकारी विद्रोह, सामंतवादी विद्रोह आदि।
रामोसी विद्रोह
- अकाल और अन्नाभाव के कारण रामोसियों ने उमाज नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया।
- गडकारी विद्रोह 1844 में कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में हुआ गडकारी वे थे जो मराठों के किलों में कार्यरत अनुवांशिक कर्मचारी थे, इन्होंने बढ़े भू- राजस्व की वसूली के विरूद्व विद्रोह किया, सरकार को गडकारियं विद्रोह को दबाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।
- 1844 में शुरू हुए सांमतवादी विद्रोह को नेता मराठा सरदार फोन्ड सा था। इन्होंने अन्य सरदारों और ईसाइयों जिसमें अन्नासाहिब भी शामिल थे सहयोग से दक्षिण भारत के अनेक किलों पर पुनः कब्जा कर लिया शीघ्र ही सरकार ने विद्रोह को कुचल दिया ।
- बेलुटंपी विद्रोह 1808-9 में त्रावणकोर (केरल) में हुआ । दीवान बेलुटंपी (त्रावणकोर) अंग्रेजों द्वारा दीवान की गद्दी छीन लेने तथा सहायक संधि द्वारा त्रावणकोण राज्य पर भारी वित्तीय बोझ डालने के कारण विद्रोह कर दिया।
- पाइक नेता जगबंधु के नेतृत्व में पाइक विद्रोहियों ने अंग्रेजी सेना को पराजित कर पुरी पर अधिकार कर लिया था ।
जनजातीय (आदिवासी)विदोह
- भारत के अनेक हिस्सों में रहने वाले आदिवासियों ने 19 वीं सदी में संगठित होकर ब्रिटिश सरकार के विरूद्व कई छापामार लड़ाइयाँ लड़ी।
- कोलविद्रोह रांची, सिंहभूमि, हजारीबाग, पालामऊ और मानभूम के पश्चिमी क्षेत्रों में फैला । इस विद्रोह का कारण था आदिवासियों की भूमि को उनके मुखिया मुण्डों से छीनकर मुसलमान तथा सिक्ख किसानों को दे देना। 1832 से 37 तक यहा विद्रोह चलता रहा।
- संथाल विद्रोह –1855-56 हुआ संथाल आदिवासियों का विद्रोह आदिवासी विद्रोहों में सर्वाधिक जबरदस्त था। यह विदोह मुख्यत: भागलपुर से राजमहल के बीच केन्दित था।
- संथाल विद्रोह को सिद्वू और कान्हू नामक दो संथालों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया। सिद्वू कान्हू ने घोषणा की कि ठाकूर जी (भगवान) ने उन्हें आदेश दिया है कि वे आजादी के लिए अब हथियार उठा लें।
- खरवाड़ विद्रोह-संथालों के विद्रोह के दमन के बाद 1870 में हुए, यह विद्रोह भू-राजस्व बंदोबस्त व्यवस्था के विरूद्व हुआ।
- भील विद्रोह-राजस्थान के बांसवारा,सूंठ और डुगरपुर क्षेत्रों के भीलों द्वारा गोविन्द गुरू के सुधारों (बंधुबआ मजदूरी से सम्बन्धित) से प्रेरित होकर विद्रोह किया गया।
- कोया विद्रोह-आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी क्षेत्र से शुरू हुआ और उड़ीसा के मल्कागिरी क्षेत्र को भी प्रभावित किया, इस विद्रोह के केन्द्र बिन्दु चोडवम् का ‘रम्पा प्रदेश’ था।
- मुण्डा विद्रोह–1893-1900 के बीच विरसा मुण्डा के नेतृत्व में हुआ यह विद्रोह इस अवधि का सर्वाधिक चर्चित आदिवासी विद्रोह था।
- मुण्डों की पारम्परिक भूमि व्यवस्था खूॅदकट्टी या मुंडारी का जमींदारी या व्यक्तिगत भूस्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था में परिवर्तन के विरूद्व मुण्डा विद्रोह की शुरूआत हुई, लेकिन कालांतर में बिरसा ने इसे धार्मिक राजनीतिक आंदोलन का रूप प्रदान कर दिया।
- बिरसा मुण्डा को ‘उल्गुलान’ (महान हलचल) और इनके विद्रोह को ‘उल्गुलन’ (महा विद्रोह) के नाम से जाना गया।
- इस समय हुए आदिवासी आंदोलन के नेता गांधीवादी समाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर अल्लूरी सीताराम राजू जैसे गैर आदिवासी इसके नेता बने।
- तानाभगत आंदोलन की शुरूआत द्वितीय विश्वयुद्व के बाद छोटा नागपुर (बिहार) में हुई। इस आंदोलन को भगत आंदोलन इसलिए कहा गया क्योकि इसका नेतृत्व आदिवासियों के बीच के उन लोगों ने किया जो फकीर या धर्माचार्य थे।
- इस आन्देालन को जतराभगत, बलराम भगत, देवमेनिया भगत (महिला) ने अपना नेतृत्व प्रदान किया।
- चेंचु आंदोलन– आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में 1920 में असहयोग आंदोलन के समय शक्तिशाली जंगल सत्याग्रह के रूप में शुरू हुआ।
- रम्पा विद्रोह– आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के उत्तर में स्थित ‘रम्मा’ क्षेत्र में हुआ आदिवासियों को यह विद्रोह साहूकारों के शोषण और वन कानूनों के विरूद्व हुआ।
सीमांत आदिवासियों के विद्रोह
- खासी विद्रोह-कंपनी द्वारा खासी और जयन्तिया पहाड़ी पर अधिकार के बाद ब्रहमपुत्र और सिलाहट को जोड़ने के लिए एक सड़क के निर्माण की योजना बनी जिसके लिए अनेक अंग्रेज और बंगाली उस क्षेत्र में आये।
- अहोम विद्रोह-असम के अहोम अभिजात वर्ग के लोगों द्वारा वर्मा युद्व के बाद कंपनी के उनके क्षेत्र से वापस न होने पर 1828 में अपने नेता गोमधर कुंवर के नेतृत्व में विद्रोह किया, सरकार ने अहोम को शांत करने के लिए समझौता किया।
- नागा आंदोलन की शुरूआत युवा गेंगमेई जदोनांग ने किया। इस आंदोलन का उदेश्य सामाजिक एकता लाना, बेढंगे रीति-रिवाजों को खत्म करना तथा प्राचीन धर्म को पुनर्जीवित करना आदि।
- 29 अगस्त, 1931 को सरकार द्वारा जदोनांग को फांसी दे देने के बाद इस आंदोलन को 17 वर्षीय नागा महिला गैडिनलियु ने अपना नेतृत्व प्रदान किया।
- गैडिनलियु ने अपने आदिवासी आंदोलन को गांधीजी के सविनय अवज्ञ आंदोलन से जोड़ा और समर्थकों, कष्टकारी करों और कानूनों की अवज्ञा करने का आदेश दिया।
- बकाश्त भूमि एस भूमि को कहते थे जो मंदी के दिनों में लगान न दे पाने के कारण किसानों ने जमींदारों को दे दिया था। इस तरह की भूमि बिहार में पायी जाती थी।
स्मरणीय तथ्यः एक नजर में
- आदिवासी नेता बिरसा मुण्डा को ईश्वर का अवतार और जगतपिता माना जाता था, इसे ‘उल्गुलान’ भी कहा जाता था।
1 संथाल विद्रोह- सिद्वू तथा कान्हू
2 पायलपंथी विद्रोह- टीपू
3 कूका विद्रोह- भगत जवाहरमल, रामसिंह
4 मुण्डा विद्रेाह- बिरसा मुण्डा
5 ताना भागत आन्दोलन- जतरा भगत, बलराम भगत
6 नागा विद्रोह- रानी गैडिनलियु
7 चेचू आदिवासी आंदोलन- मोतीलाल तेजावत